Last modified on 25 मार्च 2011, at 17:13

भागीरथी (कविता अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 25 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भागीरथी (कविता अंश)

सेाच मत कर ग्रीष्म को लख हे सदय भागीरथी,
दीन होगा क्यों हिमालय के सदय भागीरथी।
पहुँच कर तट पर तुम्हारे पुण्य दर्शन छू तुम्हारे चरण पावन,
खो तुम्हीं में प्राण खोजेगें निलय भागीरथी।
खो गयी मरू- भूमि में जो आज प्यासी मिट रही,
सेाच उसका भाग्य तुम पाओ न भय भागीरथी।
(कविता भागीरथी का अंश)