भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूर्णिमा का चाँद / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:20, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद निकला बादलों से पूर्णिमा का।
        गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
        चूमता है बादलों के झिलमिलाते
        स्वप्न जैसे पाँव।