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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 24
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(सीताजी से बिदाईं)
छंद 29से 30)
(29)
गगन निहारि , किलकारी भारी सुनि,
हनुमान पहिचानि भए सानँद सचेत हैं।
बूड़त जहाज बच्यो पथिकसमाजु, मानो ,
आजु जाए जानि सब अंकमाल देत हैं।
‘जै जै जानकीस जै जै लखन-कपीस’ कहि,
कूदैं कपि कौतुकी नटत रेत-रेत हैं।
अंगदु मयंदु नलु नील बलसील महा
बालधी फिरावैं, मुख नाना गति लेत है।29।
(30)
आयो हनुमानु, प्रानहेतु अंकमाल देत,
लेत पगधूरि ऐक, चूमत लँगूल हैं।
एक बूझैं बार-बार सीय -समाचार , कहैं ,
पवनकुमारू, भो बिगतश्रम-सूल हैं।।
एक भूखे जानि, आगें आनैं कंद-मूल-फल,
एक पूजैं बाहु बलमूत तोरि फूल हैं।
एक कहैं ‘तुलसी’ सकल सिधि ताकें,
जाकें कृपा-पाथनाथ सीतानाथु सानुकूल हैं।30।