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संस्कार / असद ज़ैदी
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:14, 29 जून 2008 का अवतरण
बीच के किसी स्टेशन पर
दोने में पूड़ी-साग खाते हुए
आप छिपाते हैं अपना रोना
जो अचानक शुरू होने लगता है
पेट की मरोड़ की तरह
और फिर छिपाकर फेंक देते हैं कहीं कोने में
अपना दोना ।
सोचते हैं : मुझे एक स्त्री ने जन्म दिया था
मैं यों ही दरवाज़े से निकलकर नहीं चला आया था ।