भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल्ली / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बीस बरस पहले की

अपनी वो आश्नाई

मुझे याद है

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


कसमें जो भी

तब तूने मुझे दिलाईं

मुझे याद हैं

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


बिन तेरे

महसूस होती थी जो तन्हाई

मुझे याद है

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


तब मुझसे तूने किए थे

जो वादे

मुझे याद हैं

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


फिर तूने तोड़ दिया था

मेरा शीशा-ए-दिल

मुझे याद है

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


सबके सामने तूने

की थी मेरी रुसवाई

मुझे याद है

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


तेरी ही वज़ह से

तब हुई थी जगहँसाई

मुझे याद है

मैं भूला नहीं हूँ अब तलक


(1992में रचित)