भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यहीं देखा / गणेश पाण्डेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण
कई
कवि देखे
कई तरह के
कवि देखे
कोई मधुकर था यहाँ
कोई काला था, कोई दिलवाला
कोई परमानंद, कोई विश्वनाथ ।
देवेंद्र कुमार को यहीं देखा
अपनी हीर कविता के लिए राँझा बनते ।