भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पापा की तनख़्वाह में / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा की तनख़्वाह में
घर भर के सपने।

चिंटू का बस्ता,
मिंटी की गुड़िया,
अम्मा की साड़ी,
दादी की पुड़िया,
लाएँगे, लाएँगे
पापा जी अपने।

पिछला महीना तो
मुश्किल में काटा,
आधी कमाई में
सब्जी और आटा,
अगले में घाटे
पड़ेंगे जी भरने।

पापा की तनख़्वाह में
घर भर के सपने।