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गिलहरी / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
पेड़ से उतर कर
बहुत चहकती - फुदकती थी
मेरे आंगन में
बच्चों की तरह
कभी पूँछ हिलाती
मेरे गुड़िया की तरह
कभी मुंह बनाती
अठखेलियाँ करती
कभी पेड़ पर
कभी मुंडेर पर
चढ़ती - उतरती
निकल जाती पास से
एक बच्ची की तरह
मुझे
बहुत अच्छी लगती थी
वह गिलहरी
ठीक मेरी बेटी की तरह.
मैं चाहता था
यूं ही खेलती रहे
मेरे आंगन में
मेरी बच्ची
और यह गिलहरी.
मगर एक दिन
काट दिया गया वह पेड़
एक विशाल भवन के लिए.
पेड़ के साथ ही
चली गई गिलहरी
न जाने कहाँ
कर गई सूना मेरा जहाँ
ठीक उसी तरह
चली गई थी
पराई होकर
जैसे
मेरी बेटी!