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शायद लिखें पिता / नीरज दइया
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मैं कोटगेट से
अनेक बार निकला
पिता भी निकले थे
पर नहीं लिखी कोई कविता
कोटगेट की ।
कविता में सिर्फ
कोटगेट का नाम आने से
नहीं होती कविता कोटगेट की ।
किसी कवि से
कोटगेट ने आज तक नहीं कहा
कि लिखो कविता ।
पिता के न रहने पर
मैंने अलग करते समय पत्तलें
अलग की एक पत्तल कोटगेट की ।
अब बतियाएंगे पिता
बीकानेर के चारों दरवाजों से
शायद लिखें वे
ब्राह्मण को दिए कागज-कलम से
कविता- कोटगेट की ।