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स्टोर रूम / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:21, 25 मई 2011 का अवतरण
अपने कमरे में इस तरह पड़ा होता हूँ
‘स्टोर रूम में जैसे कोई सामान रखा हो’
मुझको घूरते रहते हैं सारे फर्नीचर
उनकी नज़रें काटती हैं सापों की तरह
किताबें चुपचाप सोचती हैं मुझे
आईने में कोई शक्ल उभरता ही नहीं
दरो-दीवार के चेहरे उदास लगते हैं
नाराज़-सी लगती है छत भी कुछ-कुछ
कभी-कभी यूँ माज़ी की खुशबू गुंजती है
कि भीग जाता है आते हुए लम्हों का बदन
कर नहीं पाता हूँ ये फैसला अक्सर
‘मैं स्टोर रूम में हूँ’ या ‘स्टोर रूम मुझमें है’