भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 1

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 4 जून 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(50)
रागमलार

सब दिन चित्रकूट नीको लागत |
बरषाऋतु प्रबेस बिसेष गिरि देखन मन अनुरागत ||

चहुँदिसि बन सम्पन्न, बिहँग-मृग बोलत सोभा पावत |
जनु सुनरेस देस-पुर प्रमुदित प्रजा सकल सुख छावत ||

सोहत स्याम जलद मृदु घोरत धातु रँगमगे सृङ्गनि |
मनहु आदि अंभोज बिराजत सेवित सुर-मुनि-भृङ्गनि ||

सिखर परस घन-घटहि, मिलति बग-पाँति सो छबि कबि बरनी |
आदि बराह बिहरि बारिधि मनो उठ्यो है दसन धरि धरनी ||

जल जुत बिमल सिलनि झलकत नभ बन-प्रतिबिम्ब तरङ्ग |
मानहु जग-रचना बिचित्र बिलसति बिराट अँग अंग ||

मन्दाकिनिहि मिलत झरना झरि झरि भरि भरि जल आछे |
तुलसी सकल सुकृत-सुख लागे मानो राम-भगतिके पाछे ||