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ख़यालों के ज़माने सामने हैं / अशोक आलोक

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ख़यालों के ज़माने सामने हैं
हक़ीक़त और फ़साने सामने हैं
मेरी ही उम्र की परछाइयां बन
मेरे बच्चे सयाने सामने हैं
कहानी ज़िन्दगी की है पुरानी
नएपन के तराने सामने हैं
तेरी ख़ामोशियों के सिलसिलों में
मेरे सपने सुहाने सामने हैं
नहीं वादे निभा सकने के बदले
कई दिलकश बहाने सामने हैं