भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

'प्यार' संजो कर रखो/रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 13 जून 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


१-`"प्यार" जी हां प्यार भी
दिल की मुठ्ठी में ,
संजोंकर रखने की चीज है,
जमाने की हर बुरी नज़र से ,
बचा कर रखने चीज है,
कहीं जमाने की नज़र न लग जाए?
क्योंकि-जमाना हमेशा से प्यार का
दुशमन ही तो रहा है।

२-प्यार एक संवेदना है,
एक ज़ज़्बा,एक अहसास है,
जिसे संसार भर के शब्दकोश भी,
परिभाषित नहीं कर सकते,
प्यार से पगे शब्द,
रूखे अधरों पर
मुस्कान खिला देते हैं,
रोती आंखों को भी हंसा देते हैं,
प्यार की बारिस,
ऊसर धरा को भी ,
उर्वरा बना देती है,
प्यार की छुअन,
सांसो को स्पंदित कर
जीने की चाह जगा देती है।

३- प्यार का अहसास,
हर संघर्ष से
जूझने की शक्ति देता है
और प्यार ही तो,
हर बेडियों को तोड़ कर,
प्रेमियों को अमर बना देता है।
प्यार में असीम शक्ति है,
जिसके सहारे परम्पराओं के-
बंधनों की बेड़ियां तोड़कर,
कोई सोनी कर जाती है दरिया पार,
अपने महिवाल के लिए,
उसे यह भी होश नहीं रहता,
कि कोई अपना उसके साथ फ़रेब न कर दे,
जो प्यार के लिए मरने का,
हौसला रखते हैं,बस वे ही,
प्यार कर सकते हैं॥