भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नशे में प्यार के लिखते रहे हैं कविता हम / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:39, 10 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नशे में प्यार के लिखते रहे हैं कविता हम
पता नहीं कि उन्हें कह गये हैं क्या-क्या हम

उन्हींसे हो गयी रंगीन ज़िन्दगी भी मगर
भले ही आपसे खाया किये हैं धोखा हम

बहुत है शोर ज़माने में आपका, लेकिन
कभी तो देख लें सूरत उठा के परदा हम

'जगह कहीं पे हमारी भी दिल में है कि नहीं?
सवाल आज उन्हींसे करेंगे सीधा हम

चली ये कैसी हवायें, उदास है हर फूल!
नहीं गुलाब में पाते हैं रंग पहला हम