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तोड़ती पत्थर / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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वह तोड़ती पत्थर;
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।

कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन,
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गई,
प्रायः हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।

देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।

एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
"मैं तोड़ती पत्थर।"

और लीजिए अब इस कविता का अँग्रेज़ी अनुवाद पढ़िए
                 NIRALA
    THE STONE-BREAKER

She, a stone-breaker.
On the road to Allahabad I met her:
A stone-breaker.
Not the slightest shadow,
The cool of which she might have greeted.
Her dark body, withholding youth; Eyes lowered.
Thoughts buried in the stones she breaks.
Wielding the unwieldy hammer.
She strikes.
Before her sprawl the tree-girth mansions.
The mounting sun
On a hot day;
The blaze of the heat,
The scorching 'loo', *
The earth like cotton, seared,
With a mist of dust o'erspread.
Yet another afternoon saw
Her, a stone-breaker.
Looking up, she saw me,
Saw the houses,
But saw them with unseeing eyes:
Saw me
Through undefeated eyes.
I knew then
What I had never known before.
She, a stone-breaker.
A moment later, her body trembling,
There fell a drop from her sweat-washed forehead.
Turning once more to the stones, she said,
"I — a stone-breaker."

  • Loo: the dry hot wind of Northern India.

——
Translated from the Hindi by Romila Thapar