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छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद

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कवित्त

छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद

तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ।

चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही

मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।

लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह

भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।

बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे,

कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।5।।