भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर / गणेश गम्भीर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 14 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर
आ गयी है बहार चेहरे पर

एक संदेह सर उठता है ,
रंग आये हजार चेहरे पर !

झुर्रिया चादर है फूलो की ,
बन गयी एक मजार चेहरे पर

लाश पाई गयी सुधारो की,
दाग थे बेशुमार चेहरे पर!

आज गम्भीर लिख ही डालेगा ,
अपने सारे विचार चेहरे पर !