भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल भाई ! / भारत यायावर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:33, 12 जुलाई 2007 का अवतरण
बादल भाई!
तुम आए और दस दिनों तक जमे रहे
झर-झर झरते रहे
इतनी पीड़ा और इतने आँसू
कि भींग गई झोपड़ी की पूरी ज़मीन
भींग गए टाट और बोरे
चूल्हे की आग भी बुझ गई
भूख ने
पेट के चूहों को भयानक बना दिया
कहाँ जाता?
कहाँ खाता?
बादल भाई!
गरजो-मलको-बरसो
पर हम गरीबों पर दया भी करो
देखो
गली का कीचड़ बह कर
सीधे दरवाज़े के भीतर घुसा आ रहा है
पूरे घर में रेंग रहे हैं केंचुए
उछल रहे हैं मेंढक
हम घर के लोग भी
केंचुए और मेंढक हो गए हैं
(रचनाकाल :1990)