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जीवन है तो... / अवनीश सिंह चौहान
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मेरे मनुआं
जीवन है तो
जीवन-भर
पड़ता है तपना
जीवन-पंछी
बात न माने
चंचल कितना-
नभ को ताने
इसे सिखा तू
तिरना-उड़ना
और दिखा तू
सुन्दर सपना
नदिया जैसी
चाल निराली
भरी हुई है
या है खाली
कितनी उथली
कितनी गहरी
तू ही नापे
तू ही नपना
उम्र तम्बूरा
तार न बोले
ठीक लगें सुर
तो मुँह खोले
बिन गुरुवर के
जाने कैसे
क्या कुछ भीतर
क्या कुछ अपना