जेठ-दुपहरी
चिड़िया रानी
सुना रही है फाग
कैटवाक
करती सड़कों पर
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
उघरी हुई देह के जादू-
से इतराई चिड़िया रानी
पॉप धुनों पर
थिरके तन-मन
गाये दीपक राग
पंख लगाकार
उड़ती बदली
देख रहे सब है मुँह बाए
रेगिस्तान खड़े राहों में
कोई उनकी प्यास बुझाए
जब चाहे तब
सींचा करती
उनके मन का बाग़
कितनी उलझी
दृश्य-कथा है
सम्मोहक संवादों में
कागज़ के फूलों-सी-सीरत
छिपी हुई पक्के वादों में
लाख भवन के
आकर्षण में
आखिर लगती आग