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कूण कैवे है / कविता किरण

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कूण कैवे है
रीता समदर में
जाय‘र तिरां
भरया घडा में ई
पाणी भरां
कीं करणो
कीं नीं करणो
ओ ई ठा कोनी
स्म्रितियां रे
जंगळ में
रोता फिरां
अर
अपणी ई
छाया सूं डरां।
कूण कैवे



समै रे साथै
सगळा घाव
भर जावे।
बसंत रै
आतां ई
सूखा पाना
सैंग झर जावै।
कूण कैवे है ?
कूण ?