भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताँका-49-54 / भावना कुँअर
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 11 अप्रैल 2012 का अवतरण
49
माँ बीमार
बिखरती है साँस
परदेस बेटा
वो आएगा जरूर
न छोड़ पाए आस
50
खूब ही हुई
कोहरे से लड़ाई
गुस्सैल धूप
वो जादू भरी झड़ी
कहती भूल आई
51
अटारी चढ़
धूप, शोर मचाए
कहती जाए
दूँगी न अपनी मैं
चमचमाती छड़ी
52
नैन झील में
तैरते रहे मोती
भावों से घिरी
पतवार, लिए मैं
उनको रही खेती
53
कोहरा भरा
सूरज़ की फैक्ट्री में
बोले उदास-
बाटूँगा कैसे अब
मैं,गरम लिबास
54
आज़ फिर माँ
अनाज़ सुखाएगी
वो कबूतरी
पल भर में सब
चट कर जाएगी
-0-