भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामोशी में गुम / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण
जाने क्यों मुझ को
शब्द करना चाहता था वह
गुम है जो ख़ुद
ख़ामोशी में अपनी
क्यों सहन नहीं हो पाया
मैं ख़ामोश
ख़ामोशी को उस की
अब शब्द हो कर
भटक रहा हूँ मैं
हर बस्ती हर जंगल
पुकारता हुआ
ख़ामोशी को अपनी
वह भी क्या बेकल है
पुकार के लिए
किसी की ख़ामोशी में
गुम ?
—
15 अप्रैल 2010