भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लफ़्जों की रोशनी / मख़्मूर सईदी
Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:19, 31 दिसम्बर 2011 का अवतरण
वो मेरा है, मगर मेरा नहीं है
उफ़क़ पर जगमगाता इक सितारा
ज़मीं को रौशनी तो बाँटता है
उतरता है कब आँगन में किसी के
इक बन के लेकिन गाहे-गाहे
टपक पड़ता है दामन में किसी के
मैं उसका हूँ मगर उससे जुदा हूँ
गुज़रती शब के सन्नाटे में तन्हा
बचश्मे-नम भटकता फिर रहा हूँ