भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनाम गंध (हाइकु) / जगदीश व्योम

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:13, 4 जून 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

( हाइकु )

अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।


देवता नहीं
आदमी बने रहो
यही बहुत ।


नहीं पनपा
बरगदी छाँव में
कभी पादप।