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अनाम गंध (हाइकु) / जगदीश व्योम

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( हाइकु )

अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।


देवता नहीं
आदमी बने रहो
यही बहुत ।


नहीं पनपा
बरगदी छाँव में
कभी पादप।