भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेरजंग गर्ग / परिचय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डा शेरजंग गर्ग

साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि

डॉ0 गर्ग का जन्म 29 मई, 1937 को देहरादून (उत्तराखंड) में हुआ २९ मई १९३७ को देहरादून में जन्मे डॉ. शेरजंग की हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि इनके शोध प्रबंध 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में व्यंग्य' के कारण विशेष रूप से है। इस ग्रंथ को हिंदी हास्य-व्यंग्य की विधिवत आलोचना का आरंभिक बिंदु माना जा सकता है। डॉ. शेरजंग गर्ग ने इस ग्रंथ तथा अपनी एक अन्य पुस्तक 'व्यंग्य आलोचना के प्रतिमान' द्वारा व्यंग्य की गंभीर आलोचना को एक दिशा देने का प्रयत्न किया है।

गज़लों में व्यंग्य की प्रहारक शक्ति

वे अपनी गज़लों में व्यंग्य की प्रहारक शक्ति के प्रयोग के लिए भी प्रसिद्ध हैं। इनकी गज़लों में वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध एक सार्थक आक्रोश दिखाई देता है। बहुत ही सरल भाषा में सहज प्रहार करने की इनकी क्षमता तथा इनका गज़ल कहने का अंदाज़ इन्हें मंच का चर्चित व्यक्तित्व बना देते हैं। इन्होंने मंच से कभी कोई समझौता नहीं किया है अपितु मंच को सही संस्कार दिए हैं। इनका प्रसिद्ध गज़ल संग्रह है -- 'गज़लें ही गज़लें'

काव्य संकलन

डॉ. शेरजंग गर्ग ने गद्य और पद्य दोनों में समाज सापेक्ष तथा मानवीय मूल्यों पर आधारित रचनाएँ लिखी हैं। 'चंद ताजा गुलाब मेरे नाम' काव्य संकलन उनकी काव्य प्रतिभा का तथा 'बाजार से गुजरा हूँ' उनकी गद्य व्यंग्य प्रतिभा का सजग उदाहरण है।

बाल-साहित्य की रचनाएँ

बाल-साहित्य उनके योगदान को कभी विस्मृत नहीं कर सकता। ऐसे समय में जब हिंदी साहित्य में शिशु गीत न के बराबर थे, डॉ. गर्ग ने उनकी शुरूआत की। बाल-साहित्य के प्रति उनके योगदान को देखते हुए हिंदी अकादमी, बालकन बारी तथा बाल भवन ने उनको सम्मानित किया है। बाल-साहित्य की उनकी विशिष्ट रचनाएँ हैं -- 'सुमन बाल गीत', 'अक्षर गीत', 'गुलाबों की बस्ती', 'नटखट गीत', 'भालू की हड़ताल'। हिन्दी भवन के निदेशक के रूप में कार्य करते हुए इन्होंने हिन्दी से जुड़े अनेक नए कार्यक्रमों तथा आयोजनों को आयोजित किया।

सम्मान

हिन्दी में उत्कृष्ट व्यंग्य-लेखन एवं शोधकार्य के लिए डॉ0 शेरजंग गर्ग को पहला 'व्यंग्यश्री सम्मान' प्रदान किया गया। । हिन्दी में व्यंग्य-ग़ज़लें और इनका शोध-प्रबंध 'स्वातंत्र्‌योत्तर हिन्दी-कविता में व्यंग्य' चर्चित रहे। 'बाज़ार से गुज़रा हूं', 'दौरा अंतर्यामी का', 'क्या हो गया कबीरों को' और 'रिश्वत-विषवत' डॉ0 गर्ग की प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं। 'व्यंग्यश्री सम्मान' समारोह में सर्वश्री गोविंदप्रसाद केजरीवाल, डॉ0 प्रेम जनमेजय, डॉ0 रत्ना कौशिक, सुरेन्द्र शर्मा, अल्हड़ बीकानेरी और सरोजिनी प्रीतम ने भाग लिया। समारोह की अध्यक्षता 'जनसत्ता' के कार्यकारी संपादक श्री राहुल देव ने की।