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गुड़िया-3 / नीरज दइया

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तुम आई हो
किसी अन्य लोक से
बन कर सुंदर-सी गुडिय़ा

जब भी देखता हूं-
पाता हूं तुम्हें
मासूम-सी!

अब बचपन जा चुका
कहां छुपा सकता हूं तुम्हें -
सिवाय मन के!