ग्राम / सुमित्रानंदन पंत
बृहद् ग्रंथ मानव जीवन का, काल ध्वंस से कवलित,
ग्राम आज है पृष्ठ जनों की करुण कथा का जीवित !
युग युग का इतिहास सभ्यताओं का इसमें संचित,
संस्कृतियों को ह्रास वृद्धि जन शोषण से रेखांकित !
हिस्र विजेताओं, भूपों के आक्रमणों की निर्दय,
जीर्ण हस्तलिपि यह नृशंस गृह संघर्षों की निश्चय !
धर्मों का उत्पात, जातियों वर्गों, का उत्पीड़न,
इसमें चिर संकलित रूढ़ि, विश्वास विचार सनातन !
चर घर के बिखरे पन्नों में नग्न, क्षुधार्त कहानी,
जन मन के दयनीय भाव कर सकती प्रकट न वाणी !
मानव दुर्गति की गाथा से ओतप्रोत मर्मांतक
सदियों के अत्याचारों की सूची यह रोमांचक !
मनुष्यत्व के मूलतत्त्व ग्रामों ही में अंतर्हित,
उपादान भावी संस्कृति के भरे यहाँ हैं अविकृत !
शिक्षा के सत्याभासों से ग्राम नहीं हैं पीड़ित,
जीवन के संस्कार अविद्या-तम में जन के रक्षित !