भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींव का पत्थर / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 29 नवम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘मीना बाजार’ के पासा एक ‘छोटा रमना’ बाजार यहीं
‘चौबीस अगस्त’ को जुटते हैं थोड़े-से ‘सालाजार’ यहीं
-0-
आँखों में घड़ियाली आँसू
मन में छद्मों का चक्रव्यूह
अतिशय विचित्र जिनका चरित्र
मकड़े के जाले-सा दुरूह
-0-
अतिप्रातः मेहतर आता है
मल-मूत्र उठा ले जाता है
उल्टी-सीधी झाडू देकर
अपना कर्तव्य निभाता है
है छोटे घेरे में सोया मा-बहनों का ससांर यहीं
‘मीना बाजार’ के पास एक ‘छोटा रमना’ बाजार यहीं
है ‘‘ऐनुल्लाह साह’’ के घोड़े! थम-थम कर मूतो
यह वह भूमि जहाँ से गोरों ने गोलियां चलाई थीं
आजादी पर मर-मिटने की हमने कसमें खाई थीं
सीना तान गोलियाँ झेलीं, हँस-हँस कर कुर्बान हुए
यही भूमि चम्पारन की ‘नौ’ अमर शहीद जवान हुए
अर! हया कर कुछ चौपाये! शर्म-लाज लाओ कुछ तो
ओ‘‘ऐनल्लाह साह’’ के घोड़े! थम-थम कर मूती
ईंटों पर बैठा कर मुंडन करते हैं हज्जाम यहाँ
लावरिश कुत्ते मल-त्याग कर रहे सुबहो शाम यहाँ
उन धरती को एक बार, बस एक बार हम चमकाते
गाड़ तिरगां नौटंकी करते, न तनिक भी शरमाते
इन सफेदरपोशों पर थू है, लानत ऐसे छलियों परा
अमर शहीदों की स्मृति पर पुष्पाजंलि जो बरसाते
देख रही तरूणई गुमसुम, तनिक न बाजू फड़क रहे
जिनके पत्थर के सीनों में दिल न तनिक भी धड़क रहे
शर्म करो ओ तरूणों! अपनी ताकत को कुछ तो कुत्तों
ओ ‘ऐनुल्लाह साह’ के घोड़े! थम-थम कर मूतो
जरा धीरे-धीरे मूतो