भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूखा-बाढ़ / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ("सूखा-बाढ़ / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँधी के पत्तों-से काँपे अधर
रात गहराई
हाथों में नम हुई
एक तीली की दिया सलाई।

आई बाढ़ चढ़े पेड़ों पर
बाँधे खाट-खटोले,
सिर पर उड़े जहाज
पाँव के नीचे अजगर डोले,

माटी की ललछौंह बहे
ज्यों धोये हाथ कसाई।

जुड़े-कटे अंगों-से बिखरे
खेत-मेड़ घर-डीहे,
चमके धूप गड़ाँस सरीखी
बादल लगते ठीहे,

छाती धरे पहाड़ गाँव ने
गीली पलक उठाई।

आधी देह आग में झौंसी
कीचड़ सड़ती आधी,
सूखा-बाढ़ द्वैत में जन्मा
मरा साधु अपराधी,

एक-एक दिन जिया
न्याय की तुला-चढ़ी तनहाई।