भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जगी प्रतीक्षा / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ("जगी प्रतीक्षा / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखों आँखों जगी प्रतीक्षा
आधे बन्द किवाड़ों पर
दिन खाई में धँसा-धँसा
दिनमान चमकता ताड़ों पर।

सूरत, तपे हुए सोने-सी
बातें, फूलों के सौरभ में
पलक बन्द कर
मुँह धोने की,

उठी हथेली हरी
हिल रही
सूखे हुए उजाड़ों पर।

मन, सपनों के राजमहल-सा
भीतर-बाहर सम्मोहन का,
जादू चलता
हल्का-हल्का,

भौंहे तनी
कमान-तीर-सी
रंक और रजवाड़ों पर।

प्यार कि जैसे धूप शरद की
निकली, खिली, हो गई ओझल
अधर-अधर पर
अँगुली रख दी,

अंधकार का
वही धुंधलका
फैला नदी-कछारों पर।