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मिट्टी के रंग / गुलाब सिंह
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(संदर्भ : पाकिस्तान)
चन्दन-चन्दन विषधर बसते
जंगल-जंगल आग
अपने साये हुए पराए
चेहरों चढ़े नकाब।
वह भी एक लहर थी
जिसमें प्यासे कंठ जुड़ाये,
यह भी एक लहर है
चिड़िया लोटे धूल उड़ाये,
फिर सिवान की सरहद पर
सहमी-सहमी सुरखाब।
लहरों-सी मन की हलचल के
नीचे अतल कहानी,
आँखों से क्यों उतरे
फिर क्यों चढ़े धार पर पानी?
क्यों न तटों से छू जायें
अलविदा और आदाब!
मिट्टी के ही रंग फूलते
पंख फुलाती फड़कन,
चौड़ी-चिपटी हर छाती का
अर्थ एक है धड़कन,
दिल से हाथ हटाकर
क्यों मुँह खोल रहा पंजाब?