भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माता की मृत्यु पर / प्रभाकर माचवे
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:43, 25 नवम्बर 2007 का अवतरण
Bold text
माता ! एक कलख है मन में, अंत समय में देख न पाया
आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया ।
और देख कर भी क्या करता? सब वि