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आप जो आए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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147
आप जो आए
मन-मरुभूमि में
बदरा छाए ।
148
हृत्-तन्त्री पर
बजा राग सुहाना
आपका आना ।
149
प्यारे हैं रूप
माँ,बेटी, बहिन
सर्दी की धूप ।
150
मुझे न भाया
चतुर व सयाना
मैं लौट आया ।
151
धर्म के खेल
धधकती आग में
डालते तेल ।
152
गंगा नहाए
लाखों बार फिर भी
मैल न जाए ।