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अभिलाषा / बलबीर माधोपुरी

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»  अभिलाषा

ज़िन्दगी-
मैं तेरे संग ऐसे जीना चाहता हूँ
जैसे मिट्टी संग पौधा
पत्ते संग हरियाली
और आँखों संग दृश्य ।

ज़िन्दगी-
मैं तेरे साथ रखना चाहता हूँ
ऐसा मोह
जैसे सागर संग मछली
सूरज संग गरमाहट
फूल संग खुशबू ।

ज़िन्दगी-
मैं ढलानों को, शिखरों को
यूँ करना चाहता हूँ पार
जैसे सागर की लहरों को किश्ती
ऊँची-ऊँची पहाडि़यों को
कोई पहाड़ी गडरिया ।

ज़िन्दगी-
मैं चाहता हूँ रात-दिन
तपते मरुस्थल पर
छा जाऊँ बादल बन कर
गरमाहट भरे पंख बन जाऊँ
ठिठुरते-सिकुड़ते बोटों के लिए ।

ज़िन्दगी-
मैं इतना विशाल होना चाहता हूँ
जैसे सात समुन्दर एक साथ
सतरंगी किरणों वाली धूप
अनेक टहनियों-पत्तों वाला विशाल
हरा-भरा बरगद का पेड़ ।

ज़िन्दगी-
मैं तेरे संग ऐसे जीना चाहता हूँ
जैसे मिट्टी संग पौधा,
पत्ते संग हरियाली
और आँखों संग दृश्य !