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छयांसी / प्रमोद कुमार शर्मा

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रोवूं आठूं पौर
दुखै कोर-कोर
-कळपूं सबद नैं
जिण बिना अनाथ हूं
माटी रो मिंदर बणावतो हाथ हूं
दाझूं
-समद नैं।
के ठा कुणसी लै'र
म्हारी इमरत कला धौड़द्यै
अर म्हनैं समद कांठै
साव अेकलो रोवतो छोडद्यै।