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दर्द था एक / केदारनाथ अग्रवाल
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दर्द था एक
जो तुमने दिया,
हज़ार सुखों के बीच
जो मैंने पिया,
रात में तड़पा
और दिन में जिया,
न किसी ने जाना
तुमने क्या किया ।