भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश की आशाएँ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:23, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण
सैकड़ों हज़ार गिद्ध
व्योम के प्रसार में उधार क्षुब्ध क्रुद्ध पंख
माँस की पुकार मार
अंधकार का अपार आरपार नोचते !
देश के करोड़ पुत्र
छोड़ सिन्धु,गंग, ब्रह्म, विन्ध्य के महाप्रदेश,
क्षीण, वृत्तिहीन, त्रस्त,
खा पछाड़, यत्र-तत्र पेट को मरोड़ते !!