भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युग के वन्दन / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 30 मार्च 2015 का अवतरण
युग के वन्दन
नत अभिनन्दन
साँप उहें बा
जहवाँ चन्दन
लोग बढ़त बा
पग-पग क्रन्दन
इज्जत गिरवी
हावी बा धन
कठिन साधना
चंचल जब मन
राम जुबाँ पर
भीतर रावन
कलई लागल
लउके कंचन