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नाटक / नीरज दइया

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आ जूण एक नाटक है, पण म्हैं कलाकार कोनी । फेर इण रंगमंच माथै कांईं हूं म्हैं ? माडाणी मुळकणो, हंसणो अर नकली रोवणो म्हारै बस री बात कोनी । कूड़ सूं चिड़ है म्हनै, घणैमान सूं अरज है कै म्हनै फगत म्हारै हाल मांय मस्त रैवण दो ।

आलोचक बंधु ! सिरजक भाईजी सूं करजो अरज कै कथा मांय गैर-जरूरी किरदार जूण रो स्वाद बिगाड़ै । म्हैं कैवूंला आपां रै सिरजक नै थांरै बारै मांय कै चांकैसर राखै अक्कल थांरी क्यूं कै थानै दाळ में पैल-पोत कांकरो जोवण री कुबाण पड़गी है । जे कदैई कदास थांनै नीं लाधै कांकरो, तो कैवो- पूरी सीझी कोनी दाळ । थे काढो ऐब माथै ऐब- कदैई मिरच-मसालै री कमी नै लेय’र कूको । माफ करजो ! म्हारो कैवणो बस इत्तो ई’ज है कै थे खुद रो स्वाद सगळा माथै मती थोप्या करो ।

म्हैं पलटू म्हारी बात- जद आपां सगळा हां रंगमंच माथै, तो हा सगळा ई पक्का कलाकार, भलाई खुद नै माना का ना माना । आ रचना है एक कविता रै भेख अर म्हैं आपनै किणी रै कैयां सूं नीं, खुद कैय रैयो हूं- कै जद आ जूण है एक नाटक तो आपां बचां खुद रै नाटक सूं ।