भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पायताने बैठ कर ३ / शैलजा पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 21 दिसम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो अलग रहते हुए एक दूसरे से Œप्यार करते
करते रहते अपने काम
अपने-अपने शहर के मौसम में मिलाते
दूसरे शहर की गर्मी, Œयार करते
रात की चमकती सफेद चांदनी में
अपने रंगीन सपनों को ƒघोलते और प्यार करते

अलग-अलग किताब पढ़ते हुए
वो मोड़ देते एक साथ कोई पन्ना
वो रुकते और Œप्यार करते
उनके Œप्यार में नहीं आती वो शाम
न आती कोई तारीख न ˆत्योहार मिलाते उनको

पर प्यार में अलग भी कब थे दोनों
धरती हरी होती, आकाश नीला, सपने चमकीले

किताबों के कई पन्ने मुड़े हुए
लड़की के बाल लम्बे और खूबसूरत थे
लड़के की उलझनें उलझे बालों से भी ज्यादा उलझी
एक दिन सफेद ƒघोड़े पर चमकते कपड़ों वाला राजकुमार
धूल उड़ाता आता
और लम्बे बालों वाली राजकुमारी को उठा ले जाता

ये फोटो बड़े किताब के बड़े रंगीन पन्ने पर बनी थी
लड़की राजकुमारी नहीं रस्ते आसान नहीं
सफेद ƒघोड़े खाली सूने रास्तों पर ओझल
लड़के के हाथ में Œप्यार वाली किताब
लड़की के होंठ पर मिलन वाले गीत।