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पायताने बैठ कर ९ / शैलजा पाठक

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रेलगाडिय़ों के लिए बचाई जा रहीं पटरियां
यात्रियों के उतरने को बनाये गये Œप्लेटफॉर्म
हवाओं को काट कर उड़ाये गये होंगे हवाईजहाज
स्याही की खेती कवियों की बेचैन रातों का किस्सा होगी
मुंडेर पर बचे धान से पहचान जाती है गौरय्या हमारी फितरत

रेशमी डोरियों की नोंक पर बिंधी मछली की चीख होगी
संवेदना को बचाने की जुगाड़ में
समय ने सरका दिए खाली का$गज़
जेब में बचा अकेला सि€का भूल जाता है खनकना
कि खनकने की खातिर भिडऩा पड़ता है

जाल से छान लिए गये कबूतरों ने
आसमान चुन लिया बार-बार
बिखरी कविता को संभाला
सहेज ठीक-ठाक किया
हिज्जे-मा˜त्राओं को असा-कसा

मैंने अभी-अभी लिखा तुम्हारा नाम
कबका लिखा जाना था ना इसे
मैं देर से समझती हूं
कि पलटती मोड़ पर छूट गई तुम्हारी नजरों से
एक मौन कुछ बोलता सा रहा

मैंने बड़ी देर से दुरुस्त किये ƒघरौंदे
ओह! तो तुम बरसे थे...भीगी थी
तुमने तपाया था धूप सा
लाल थीं आंखें प्यासी रेत बिखरती रही
'किसे किसके लिए बनाया गया' की खोज ने
मुझे तुमसे दूर कर दिया

दरम्यान सुना बड़ी पहाडिय़ां खड़ी कर दी गईं
उफनती नदियों को छोड़ दिया गया
बंद हो गई स्याही की खेती

हौले से निकल जाती हूं
उन रेल पटरियों पर
Œलेटफॉर्म सदियों से
एक मुसाफिर की खातिर बिछा है

पहाड़ी गीत के मीठे बोल सा सपना
एक थी मैना
एक था पिंजरा
और एक राजा भी था...।