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तुम आ गई... / केदारनाथ अग्रवाल
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तुम आ गई हो मेरे अस्तित्व में
- अपने अस्तित्व से निकल कर
भरपूर बढ़ रहे अपने व्यक्तित्व के साथ
जहाँ व्याप्त हूँ मैं
- वहाँ व्याप्त होने के लिए
निरभ्र नीलिला के नीचे
पृथ्वी के साथ प्रदक्षिणा करने के लिए
त्रिकाल के साथ
- जप और जाप करने के लिए
दृश्य और अदृश्य में
श्रव्य और अश्रव्य में
ज्ञेय और अज्ञेय होकर सर्वत्र विद्यमान रहने के लिए ।