भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पोएट्री मिस मैनेजमेंट / विमल कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 6 अगस्त 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता क्या है?

शुक्ल जी की तर्ज़ पर
सोच रहा हूँ अव ग्लोबल समय में

पोएट्री क्या है
मैनेजमेंट
या फिर मिस मैनेजमेंट

तभी पास हो गया जी० एस० टी० कल देर रात में
ख़ूब छपी ख़बर अख़बार में
कि यह ऐतिहासिक है
कहा टी० वी० के सामने मंत्री ने
यह तो बिलकुल क्लासिक है

इसी मंत्री ने सेवेन्थ पे कमीशन को भी हिस्टोरिक बताया था
अपनी सरकार को करगिल वार में हेरोइक बताया था

पोएट्री क्या है
मैं सोच ही रहा था
कि दौरा पड़ गया मुझको रास्ते में

करने लगा अजीबोग़रीब हरकतें
लिखने लगा नीद में प्रेमिकाओं को ख़तें

लेकिन एक क्रिटिक ने मुझे आलोचक बता दिया
आई० एन० जी० सी० ऐ० के सभागार में
होम मिनिस्टर के सामने एक बूढ़े लेखक के त्यौहार में
कल्चर मिनिस्टर के पास मंच पर बैठा मैं सोचता रहा

पोएट्री क्या है
मैनेजमेण्ट या मिस मैनेजमेण्ट
कि कुछ भी लिख दूँ
और हो जाऊँ फेमस
बिना किसी सम्वेदना के
निरी बौद्धिकता के
जिसमे असीम सामाजिकता हो
पर क्या यही अब लिटरेचर की वास्तविकता हो

दोष राइटर का नहीं
महिला फ़ाइटर का नहीं
जूरी का है
यानी हिन्दी कहानी के शेरशाह सूरी का है
दरअसल यह साहित्य में एक ट्रम्प कार्ड था

संयोग देखिए, अमरीका में भी एक ट्रम्प था
इलेक्शन में खड़ा था
भारत में भी एक प्रतिभाशाली शख़्स कविता के सेलेकशन में परदे के पीछे खड़ा था

पोएट्री क्या है
केवल खुन्नस तो नहीं
कोई महत्वाकांक्षा तो नहीं
सूचनाओं का रजिस्टर तो नहीं
केवल प्रदर्शन तो नहीं
चर्चित होने के लिए आमरण अनशन तो नहीं
फेसबुक पर सुबह से शाम तक घर्षण तो नहीं

मैं सोच ही रहा था
कि चैनल पर शुरू हो गया था मुक़ाबला
सतीश उपाध्याय आ ही गए थे
हमेशा की तरह विराजमान थे राकेश जी
इस बीच इन्फ़लेशन और बढ़ गया था
रुपया डॉलर के मुक़ाबले और कमज़ोर हो गया था
नीति आयोग की कोई नीति नहीं थी
रचना को देखने की उनकी दृष्टि में कोई स्फीति नहीं थी
क्योंकि समर्थक भी विकराल थे
उसमे महीपाल थे

पोएट्री क्या है
सोच ही रहा था

कि एयरफ़ोर्स का एक विमान लापता हो गया था
राष्ट्रभक्त १७२ फ़ीट तिरंगा लिए खड़े थे उना में
एच० आर० डी० मिनिस्टर अपने गुरु से मिल रहे थे पूना में

पूरा दृश्य मुल्क का पीपली लाइव था
कविता थी इण्टरनेशनल
अब उसका हाइप था
कवि भी झोला छाप नहीं था
बाकायदा आई० आई० एम० का एम० बी० ए० था

पोएर्टी क्या है
अबतक कोई जान नहीं पाया था
गूंगे का गुड़ था
या हाथी की सूँढ़ थी

सबके धारदार तर्क थे
जो अधिक चतुर थे
उनके विचित्र कुतर्क थे
कुछ लोग इस बहस में बहुत सतर्क थे

पोएट्री क्या है
मैं सोच ही रहा था
मैनेजमेण्ट
या मिस मैनेजमेण्ट
या एडिटर का जूरी के साथ निजी अरेंजमेण्ट

लेकिन यह सच है
यह एक निहायत स्त्री विरोधी वक्तव्य था
यह कविता विरोधी बयान भी था
कुण्ठित पुंसत्व से भरा हुआ

अरे भाई एक स्त्री को को लिखने दो
क्यों पीछे पड गए
उसे अभी सीखने तो दो
बहस का स्तर इतना न गिराओ
पोएट्री मैनेजमेण्ट न सही
मिस मैनेजमेण्ट तो न कहो

मिल जाए जब किसी को अवार्ड
तो मान लीजिए
कि रचना महान है

कविता की समझ नहीं आपको
नहीं मिला जो यह पुरस्कार कभी लालटेन छाप को
बन्द करें बहुत हो गया यह प्रलाप
कभी तो कुछ अच्छा भी लिखे आप....