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विनय पत्रिका / तुलसीदास

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राग बिलावल

श्री गणेश-स्तुति

गाइये गनपति जगबन्दन. सन्कर-सुवन भवानी-नंदन..१..

सिद्धि-सदन, गज बदन, बिनायक. कृपा-सिंधु, सुंदर, सब-लायक..२..

मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता. बिद्या-बारिधि, बुद्धि-बिधाता..३..

माँगत तुलसिदास कर जोरे. बसहिं रामसिय मानस मोरे..४..

सूर्य स्तुति

दीन-दयालु दिवाकर देवा. कर मुनि, मनुज, सुरासुर-सेवा..१..

हिम-तम-करि-केहरि करमाली. दहन-दोष-दुख-दुरित-रुजाली..२..

कोक-कोकनद-लोक-प्रकाशी. तेज-प्रताप-रूप-रस-रासी..३..

बेद-पुरान प्रगट जस जागै. तुलसी राम -भगती बर माँगै..४..

शिव-स्तुति

को जाँचिये संभु तजि आन.

दीनदयालु भगत-आरति-हर, सब प्रकार समरथ भगवान..१..

कालकूट-जुर जरत सुरासुर, निज पन लागि किये बिष पान.

दारुन दनुज. जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान..२..

जो गति अगम महामुनि दुर्लभ, कहत संत, श्रुति, सकल पुरान.

सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान..३..

सेवत सुलभ, उदार कलपतरु, पारबती-पति परम सुजान.

देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ क्रिपानिधान..४..

राग धनाश्री

दानी कहुँ संकर-सम नाहीं.

दीन-दयालु दिबोई भावै, जाचक सदा सोहाहीं..१..

मारिकै मार थप्यौ जगमें, जाकी प्रथम रेख भट माहीं.

ता ठाकुरकौ रीझि निवाजिबौ, कह्यौ क्यों परत मो पाहीं..२..

जोग कोटि करि जो गति हरिसों, मुनि माँगत सकुचाहीं.

बेद-बिदित तेहि पद पुरारि-पुर, कीट पतंग समाहीं..३..

ईस उदार उमापति परिहरि, अनत जे जाचन जाहीं.

तुलसीदास ते मूढ माँगने, कबहुँ न पेट अघाहीं..४..