भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आईना / भूपेन हजारिका
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 10 अप्रैल 2008 का अवतरण
|
चाह की ऊंचाई पर
मन भी कैसा है
कैसा है आईना
पूरी तरह कोई
मन को ही बना देता है आईना
आईना को सौंपोगे कुछ
न इंकार करेगा न स्वीकार।
आईना से मांगोगे कुछ
लेगा नहीं कुछ, न ही देगा
फेंकेगा नहीं कुछ
कैसा है आईना
मन कैसा है
चाह की ऊंचाई पर ...