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याद / मनप्रसाद सुब्बा

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यादको सिमसिमे झरी
झरिरहन्छ एकोहोरो
छातीको पाखाभरि।


भिज्छु बेस्सरी भित्रभित्रसम्म
तर चाहना बलिरहेको दीयो
निभ्दै निभ्दैन, अचम्म !


वरिपरि फैलिँदो छ यादको
अखण्डित समय अनन्त
जहाँ कुनै अर्थ छैन
वाद या विवादको।