भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं परधान / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू भिखमंगा
बिल्कुल नंगा
मुँह में बस
दस हाथ जु़बान
सूखी हड्डी
सीना तान
मेरे हाथ में
धनुहा बान

तेरी चमड़ी
मेरा जूता
तेरा भेजा
मेरा कीमा
पूछे अब भी
मेरी सीमा
मुझसे अधिक कौन सयान
तू चिरकुट मैं परधान

मैं सूखे जंगल का मधुवन
तेरा तीस का लटका जोबन
मिट्टी एक
अलग मकान
तू भिखमंगा दर-दर भटके
ढूढ़े चाउर - दाल - पिसान
मेरी जेब में हिन्दुस्तान