भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ जानता है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
पेड़ जानता है
वह दुकान बन चुका है
और बाज़ार के सामने खड़ा है
पूरा का पूरा
स्वाहा होने तक
पेड़ जानता है
वह सिर्फ देता है
लेता कुछ नहीं
पेड़ जानता है
उसके नीचे मुसाफ़िरों का डेरा है
और ऊपर परिन्दों का रैन बसेरा है
पेड़ जानता है
एक मुट्ठी छाँव के लिए
इन्सान कभी-कभार पेड़ को पूजता है
पर, है बड़ा खुदगर्ज और एहसान फ़रामोश
इन्सान एक भी मौका नहीं चूकता
अपने फ़ायदें का
आरा लिए खड़ा रहता है