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गळगचिया (5) / कन्हैया लाल सेठिया
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सूई, 
तूं फूलां रो काळजो छेक‘र कांई काढ्यो? 
डोरो तो हार में ही रहग्यो
पण तूं तो जीत में रै’र ही नागी-बूची ही रही।
 
	
	

